राजस्थान की उतम अभिनव कृषि और अभिनव उद्योग
आप यह सोचकर देखिये कि....... राजस्थान के सभी परिवार गेहूं की जगह बाजरा-ज्वार-मक्का खाने लग गए हैं. सब्जियों में सांगरी, काचरा, केर, ग्वारफली, मोठ-चंवला की दाल खाने लगे हैं, सेब की जगह बेर खाने लगे हैं, और तिल-मूंगफली का तेल काम में लेने लगे हैं. घी, गाय का प्रयोग कर रहे हैं. मिठाई में लापसी हर तरफ दिखाई दे रही है. स्थानीय रैगरों के बनाये जूते-जूतियाँ पहनने लगे हैं. स्थानीय कुम्हारों के बर्तन काम में लेने लगे हैं. स्थानीय दर्जियों के बनाये कपड़े दुकानों में मिलने लगे हैं. स्थानीय लुहारों द्वारा बनी अलमारियां-कुर्सियां काम आ रही हैं. स्थानीय सुथारों का बनाया फर्नीचर बाजारों में बिक रहा है. स्थानीय छोटे उद्योग, पेन-पेंसिल-साबुन-तेल-पाउडर-टूथपेस्ट-ब्रश से राजस्थान के बाजार को भर रहे हैं. अख़बार-चेनल में राजस्थान की सरकार स्थानीय उत्पादों का जमकर और रोचकता से प्रचार कर रही है. (सरकार का काम ही यही होता है- समाज और बाजार को नई दिशा देना. ‘राज’ करना नहीं !) ऐसा होते ही दो वर्ष में ही राजस्थान की अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन आ जायेगा. किसानों, कारीगरों और मजदू