मृत्युभोज कुरीति पर विद्यार्थियों का नाटक

मृत्युभोज पर राजकीय उच्च प्राथमिक विधालय थलांजु में 26 जनवरी 2018 को प्रस्तुत नाटक का अंश :

परिवार की आर्थिक स्थिति : 

परिवार जिसमे 3 पुत्र है परिवार जब छोटा था तब पिता जी जैसे तैसे भी खेती बाड़ी करके और काम चलाया .. थोडा थोडा सभी को पढाया फिर सभी की शादीयां कर दी.. थोड़े साल बाद पुत्र अलग होते गए ... पिताजी के पास एक पुत्र बचा जो उनकी देखभाल कर रहा था ... सब अपने अपने काम -धंधे और मजूरी के लिए बाहर काम पर चल गए.... पिताजी की उम्र अब 70 साल को हो चली है.. सयोंग से पिताजी को कुछ बीमारी लग जाती है जिससे शरीर का कुछ हिस्सा काम करना बंद कर देता है .... पिता जी हालात आए दिन बुरी होती जा रही है.. साथ में रहने वाला पुत्र एक दो बार इधर उधर डॉक्टर के पास ले जाता है लेकिन इलाज के लिए डॉक्टर्स की मोटी रकम देख उसके चहरे पर पसीने आ जाते है.. मन ही मन मारा जा रहा है और भगवान को याद करता ही कैसा दुःख आपने मेरे उपर दिया है ? फिर अपने से अलग हुए भाइयों से मदद मांगता है बाकि के भाई एक बार मदद के लिए आगे आते है और पिता जी इलाज करवा लेते है ... जैसे तैसे करके पिता जी को घर पर लाया जाता है.. उसके बाद सगे सम्बन्धी पिता से मिलने आते है आए दिन घर पर चाय पानी और रोटी का खर्च भी बढ़ने लगा... पुत्र को कापी पेरशानी होनी लगी.. एक साल चला .. दुसरे साल चला .. बाद में अलग हुए पुत्रों ने धीर धीरे हाथ खींचने शुरू कर दिए और साथ वाले पुत्र ने भी .. बुज़ुर्ग की हालात कापी बदतर होती गई ... बीमारी ने चारों तरफ से घेर लिया .. आस पास में रहने वाले सगे भाई सम्बन्धी पुत्रों को इलाज के लिए बोलते है लेकिन अब पुत्रों पर ज्यादा असर नहीं हो रहा है .. ऐसे में सगे सम्बन्धी भी एक दो बार इलाज के लिए साथ जाते है .. लेकिन बीमारी और बुडापा पीछा नहीं छोड़ रहा है ... क्या करे सारे पुत्र परेशान है .. पूरा इलाज करवाने का पैसा नहीं हिया .. ठीक से उनकी सेवा नहीं की जा रही है...... एक दिन साथ रहने वाल पुत्र घर से बाहर काम पर होता है ... 

परिवार में दर्दनाक हादसा:
 
सयोंग से रात को पिताजी का सर्गवास हो जाता है ... माताजी एवं घर के घर के बच्चे चिलाते है की बाबा जी नहीं रे बाबा जी नहीं रे ... आस पास कई सारे लोग एकत्रित हो जाते है तब तक सारे पुत्र भी आ जाते है..................... उसके बाद क्रियाकर्म कर दिया जाता है .. 

परिवार में मिठाइयों का दौर :

तभी गाँव का दो चार आदमी एक कोणे में बात करता हुआ सुनाई देता है की बाबा जी रे लारे तो नुक्ती चालेली या मोतीभाग... उनमे से एक आदमी कहता है भाई 3 पुत्र है सगला बाहरे काम करे है अ कई कमजोर है गुंदपाक करेला........ धीरे से 3 दिन पर कुटुंब का लोग धीरे से बात करते है क्या भोजन करना है आगे वार आ रहा है लोग मिलने आयेंगे? तब एक समझदार आदमी कहता है कई बात करो थे .. हो काम आपां थोड़ी करा ला .. तब सारे बुजुर्गे ,पुत्र कहते है नहीं करे करनी हो पडसी नहीं तो लोग कई कैसी? बीच में एक आदमी बोलता है नहीं रे आपां तो पुरो गाँव जिम्मा सा.. बाबा रो गाँव में नाम हो?  बाबाजी खासा ढंग रा हा अब औलद लारे निवड गी ... ऐसे करके और वारों में नुक्ती और सब्जी रोटी शुरू कर देते है ओर साथ में अमल/डोडा की मनुहार के साथ शुरुवात कर देते है  .. आए हुए लोगो को खूब मिठाइयाँ  परोसी जा रही है और लोग जिम रहे है... कटुम्ब वाले भी कह रहे की भाई अब तो 12 दिन रो भोजन आवडो है सा ...... कई नशेडी पुरे दिन अमल डोडा जोरदार पिए रिया है.. गाँव में बातां चलने लगी की भाई सुधारों बड़ो जोर को हो रियो है... और अब बात बारंवे दिन पर पंच गोंदपाक का हलवा तय कर देते है .. उसी दिन पुरे गाँव रा लोग छोटे से लेकर बड़े तक गोंदपाक खाने पहुँच जाते है .. सारे दिन मिठाइयाँ खाते है साथ में एक खोथ्ले भी बच्चो के लिए ले जाते है......

ओड़ावानी /परावनी की रस्मे :

कई बैठा - बैठा ओड़ावानी / पहरवानी रो अनुमान लगावे के .. बी छोरे से ससुराल वाल थोड़े ठीक है 1 लाख रिप्या दो घाल देसी ..... जोर सो  ट्रेक्टर ट्रोलियाँ .गाड़ियों भरकर लोग आकर सब मौज में भोजन करके और 12 वां कर देते है........सारे गाँव में एक ही बात होती है कई भाई अडो बड़ो जोर को करियो सा....  उसके 4-5 दिन पाछे सगळा भाई एक जागिय बैठे हिसाब करे जाने .. ठा पढियों के एक जाने 2-3  लाख रिप्या माथे आवे है ? हर मन में सोचियों जीवड़ा हे पिसा तो 5 साल ही कुणी उतर अब कई करा ..जीते कोई और मायरों या काम आ जासी........ जी रो जन्झाल पिछों ही कोणी जोड़े ... 

नाटक से सीख:

तो ग्रामीणों अब बताओ गाँव का हर ग्रामीण इस कुरीति में फसा है... तो आप मेरे जैसे बच्चे को कैसे अच्छी शिक्षा कैसे दिलवाओगे? बाबाजी को मरने से पहले अच्छे से इतने पैसे उनके बीमारी के ईलाज के लिए करवाते तो उनके मन को शांति मिलती वो परेशान होकर इस तरह संसार छोड़कर नहीं जाते ? क्या आपके सिर्फ मिठाई खाने से अगर किसी भाई के ऊपर इतना कर्जा हो जाता है तो मिठाई खानी क्यों नहीं छोड़ देते ? क्रियाकर्म तो पहले आपके बुज़ुर्ग भी करते थे बिलकुल कम खर्च पर अब आप बिना वजह क्यों इस कुरीति पर खर्च कर रहे हो ? आज आप शिक्षा के प्रागंण से सौगंध लेकर के जाओगे की आज के बाद साधारण क्रियाकर्म जैसा भगवत गीता में / गरुड़ पुराण में लिखा है वैसा करवायंगे बिना वजह किसी भाई को परेशानी में नहीं डालेंगे. ? हो सकता है गाँव के 5 परिवार सक्षम हो जो बढ़िया कर सकते है तो उनके पास तो पैसा है लेकिन जिनके पास पैसा नहीं वो उनकी देखा देखी क्यों करे? 

मृत्युभोज में मिठाई की जगह क्या किया जाए ?

मैं हाथ जोड़कर निवदेन करता हूँ जिनका पास पैसा वो हटे कटे लोगो को मिठाई खिलाने से बढ़िया है किसी सामजिक कार्य जैसे विधालय में भवन का निर्माण करवा दो / सार्वजनिक स्थान पर प्याऊ बनवा दो / गाँव में शानदार पेड़ पौधे लगवा दो ? आप अपने पिता जी नाम अमर कर जाओगे.... जय हिन्द  

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